कौमी एकता का अजेय दुर्ग है असीरगढ़, यहां शिवालय, मस्जिद और ईसाई कब्रस्तान भी है

 जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर दक्खन का द्वार कहलाने वाला अजेय असीरगढ़। तेहरवीं से अठारहवीं सदी तक यहां कई राजा और बादशाहों का शासन रहा। अंग्रेज यहां ईसाई कब्रस्तान बना गए। यह गढ़ कौमी एकता का अजेय दुर्ग है।


1396 से 1596 तक असीरगढ़ पर फारूखी बादशाहों का शासन रहा। 15वीं शताब्दी की शुरुआत में यहां जामा मस्जिद बनी। चौथे फारूखी बादशाह आदिल खां फारूखी ने बनवाया था। यह मस्जिद पिलर जोड़कर बनाई है। शिलालेख पर संस्कृत और अरबी में लिखा है। आदिल खां फारूखी ने ही असीरगढ़ व गढ़ के नीचे शिव मंदिर बनवाया। गढ़ के मंदिर दो शैली में बने हैं। एक गुबंद हिंदू तो दूसरा इस्लामिक शैली का है। समुद्र तल से 701 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस किले का सबसे ऊपर वाला परकोटा असीरगढ़ कहलाता है। मध्य भाग कमरगढ़ और निचला भाग मलयगढ़ है।


मराठा काल : 1860 से 1878 के बीच हुआ शिवालय का जीर्णोद्धार
1860 से 1878 के बीच मराठा काल में इसका जीर्णोद्धार किया गया। किवदंती है कि असीरगढ़ के शिवालय में आज भी अश्वत्थामा रात को फूल चढ़ाने आते हैं। 1860 से 1880 के बीच यहां ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा रहा। अंग्रेज अफसरों ने 1815-16 में यहां ईसाई कब्रस्तान बनवाया। इसके अलावा यहां मुस्लिम कब्रस्तान, मामा-भानजा तालाब और फांसी घर तालाब भी है। बताते हैं यह किला आशा अहीर और फारूखी काल में बना है।